लक्ष्मी मन्त्र

लक्ष्मी शब्द लक्ष से लिया गया है जिसका अर्थ होता है उद्देश्य ,निशाना, प्रयोजन, मतलब .लक्ष लेना मतलब उद्देश्य लेना है . क्या आप जानते हैं हम लक्ष्मी मन्त्र का जप क्यों करते हैं.बहुत से लोग कहेंगे कि लक्ष्मी मन्त्रों का जप धन दौलत पाने के लिए करते हैं.  पर ऐसा नहीं है – हम लक्ष्मी मंत्र का जप अपने लक्ष को जानने के लिए तथा उसे फलीभूत अर्थात पूरा करने के लिए करते हैं .
लक्ष्मी मंत्र को मनी मन्त्र भी कहा जाता है लेकिन इसका ये मतलब नहीं है की हम इस से सिर्फ आर्थिक समृद्धि पा सकते हैं अपितु  ये मन्त्र हमें समझदार बनाता है. लक्ष्मी माँ समृद्धि, भाग्य और सौंदर्यता की अवतार हैं तथा समृद्धि , भाग्य , सौंदर्यता प्रदान करती हैं . 

1. लक्ष्मी मन्त्र

इस मन्त्र का जप  ७२ दिनों में १.२५ लाख बार करना चाहिए और बाद में  हवन करना चाहिए . जप के दौरान षोडशोपचार विधि द्वारा माता लक्ष्मी की आराधना करनी चाहिए.

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्मांक दारिद्र्य नाशय प्रचुर धन देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ ।

2. लक्ष्मी मन्त्र

इस मन्त्र का जप दिवाली वाले दिन २१ माला करना चाहिए .  (21 x 108 )

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ॐ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्री ॐ।

3.  लक्ष्मी मन्त्र

अपने कार्यालय जाने से पहले इस मन्त्र का जप कीजिये. ये जप आप प्रतिदिन करें तो लाभ जल्दी मिलेगा.

ॐ ह्री श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय पूरय चिंतायै दूरय दूरय स्वाहा ।

माँ लक्ष्मी के अन्य मंत्र –

 महालक्ष्मी मन्त्र

ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो, धन धान्यः सुतान्वितः। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ॐ ।।

लक्ष्मी गायत्री मन्त्र

ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ ।।

लक्ष्मी मन्त्र  (बीज )

।।ॐ श्रीं श्रियें नमः ।।

ज्येष्ठ लक्ष्मी मन्त्र

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ज्येष्ठ लक्ष्मी स्वयम्भुवे ह्रीं ज्येष्ठायै नमः ।।

महालक्ष्मी यक्षिणीविद्या

ॐ ह्रीं क्लीन महालक्ष्म्यै नमः ।।

श्रीलक्ष्मी नृसिंह मन्त्र

।। ॐ ह्रीं क्ष्रौं श्रीं लक्ष्मी नृसिंहाय नमः ।। ।। ॐ क्लीन क्ष्रौं श्रीं लक्ष्मी देव्यै नमः ।।

एकादशाक्षर सिद्ध लक्ष्मी मन्त्र

।। ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सिध्द लक्ष्म्यै नमः ।।

द्वादशाक्षर महालक्ष्नी मन्त्र

।। ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौ: [ ___ ] जगात्प्रसुत्यै नमः ।।

 

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